*आपकी पहचान है आपका लेखन*
*लिख-लिख भेजूँ चिट्ठीयाँ*
*मेरे कान्हा तुझे मैं भेजूँ यूँ संदेश,..*
सुना तो बहुत पर जिया भी कम नहीं। कितनी ही बातें बोल दो, पर कहते है *सौ कहे पर एक लिखा अधिक भारी होता है।*
सृजन का मूल सिद्धांत भी यही कहता है कि व्याख्यान पर भारी आपकी पुस्तक या आपका लिखा हुआ सृजन है ।
अकसर देखने में आता है कुछ लोग खुश होते हैं तो गुनगुनाते हैं कुछ लोग दुखी होते हैं तो गाने सुनते हैं। कुछ चित्रकारी करते हैं कुछ अपने आपको किसी अन्य माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं। लेकिन *खुद को अभिव्यक्त करने का सबसे प्रासंगिक माध्यम है लेखन।*
चाहे पत्र लिख कर प्रेम की अभिव्यक्ति हो, डायरी लिखकर भावों को अभिव्यक्त किया जाए, कविता लिखकर गुनगुनाया जाए, लेख लिखकर सहमति असहमति जताई जाए या अन्य भावों को अभिव्यक्त किया जाए। लेखन किसी भी विधा में , किसी भी अवस्था में या किसी भी भाव में किया जाए मन को सुकून तो देता ही है साथ ही आपके विचारों की धारा भी (सकारात्मक या नकारात्मक) प्रदर्शित करता है।
कुछ लोग जो बातें कह पाने में खुद को असमर्थ पाते हैं लेखन के माध्यम से सबकुछ कह देने की क्षमता रखते हैं।
जीवन में जो कुछ घट रहा है, जो कुछ सहा है, जो सपने पाना चाहते हैं, जो उम्मीदें और आक्रोश है, परिस्थितियों को देखने का नजरिया है या बदलाव के उपाय हैं सब कुछ एक लेखक की शैली को प्रभावित करता है।
हम सभी खुशकिस्मत हैं जो उस युग में जी रहे हैं जिसमें सोशल मीडिया ने बहुत बड़ा मंच दिया है खुद को अभिव्यक्त करने का। व्यर्थ के चुटकुले लिखने, पढ़ने और सुनने से बेहतर है समाधान के रूप में अपनी लेखनी का प्रयोग करते हुए अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का क्योंकि जिस तरह कभी-कभी बड़े-बड़े शस्त्र जो नहीं कर पाते वो काम शास्त्र रुपी एक सुई कर देती है ठीक उसी तरह जो प्रभाव बड़े-बड़े शास्त्र न डाल पाए हैं क्या पता आपका लिखा कोई शब्द या वाक्य किसी के जीवन को दिशा देने के काम आ जाए।
और सबसे महत्वपूर्ण बात, खुद के विचारों को लिख देना एक बहुत अच्छा ध्यान कर्म तो है ही बल्कि अकेलेपन या ऊब जैसी विकट समस्याओं से निपटने का अचूक साधन भी है और यही साधन आपको अभिव्यक्त करने के साथ-साथ आपके व्यक्तिव की पहचान, आपके विचारों का आईना बनकर किसी के लिए प्रेरणा तो बन ही सकता है लेकिन सबसे पहले आपका लेखन आपकी पहचान बनने का दमखम रखता है।
इसलिये *यदि आपके पास शब्दों का खजाना और भावनाओं का पिटारा है तो चूकिए मत जुट जाए अपने इस हुनर को तराश कर अपने व्यक्तित्व को नई दिशा और नई पहचान दिलाने के लिए।*
डॉ. प्रीति सुराना
संस्थापक- अन्तरा शब्दशक्ति प्रकाशन
www.pritisamkit.com
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