Tuesday, 4 November 2014

"यादों की किताब"

सुनो!!!!

आज पलटे 
मैंने यादों की किताब के सारे पन्ने
पलटते हुए कई जगह रूकी,..
कई पन्नों को झट से पलट दिया,..

कहीं पर 
कुछ पल रूककर हंसी,. 
कई पन्नों पर आज फिर छोड़ आई 
आंसुओं के निशान,...

तुम्हारे 
कदमों की आहट से चौंककर 
लौट आई 
खयालों से बाहर,..

वरना 
आखिर के 
कुछ खाली पन्नों को देखकर 
यही सोच रही थी,..

काश लिख पाती इन बचे हुए पन्नों पर 
कुछ ऐसा जो मैं लिखना चाहती थी,.. 
या बदल सकती उन पन्नों को 
जिनपे मैं अपने आंसू छोड़ आई,..

खैर जाने दो,..
मैं जानती भी हूं और समझती भी हूं
जिंदगी की किताब 
नही लिखी जा सकती कभी एक रंग की स्याही से 

और 
ना ही मैं लिख सकती 
इसमें अपनी रचनाओं की तरह 
अपनी मर्जी से कुछ भी,..

क्यूंकि 
ये सच है 
जिंदगी प्रकृति की तरह ही है 
जिसमें अनेक रंग होते हैं,..

हां 
मुझे ये भी पता है 
प्राकृतिक चीजों में बदलाव 
बनावटीपन कहलाता है,..

चलो,..जाने दो इन सारी बातों को,..
मैं ऐसी ही हूं और ऐसी ही रहूंगी,.. 
हमेशा 
अपनी "यादों की किताब" की तरह,...,...प्रीति सुराना

11 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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  2. Aapki yaado ki kitaab bahad khubsurat..... Bhaawpurn !!

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  3. ज़िंदगी कई रंगो का मेल है, एक रंग में एक स्याही में कैसे जाएगी , और यादें एक जंगल हैं , बियाबान जांगले , जिसमें भटक कर ही रह जाता है इंसान , सुन्दर प्रस्तुति

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  4. आपके यादो की किताब अतिसुन्दर हैँ।
    आभार
    मेरे ब्लॉग पर स्वागत है।

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