Tuesday 30 July 2013

अनुत्तरित अपठित गद्यांश सा,.

सुनो

हम दोनों हर बार 
एक नए विषय पर
नया विवाद करते है
वादी प्रतिवादी की तरह,..

पर निष्कर्ष नही निकलता 
महत्वपूर्ण विषयों पर
गहनता से की गई 
एक अर्थपूर्ण बहस का,..

अकसर आखिर में जाकर
हम दोनों अटक जाते हैं
अपने नजरिये को छोड़कर
अपनी अपनी जिद पर,..

अब मन में कभी 
कोई मलाल मत रखना
चलो मान लिया मैंने
जीते हर बार तुम्ही,....

मैं सचमुच हार गई
मेरी हर आखरी बात
हमेशा बनकर रह गई
परीक्षा में अनपेक्षित प्रश्न,..

मेरा नजरिया रह गया
अकसर विषय से अलग
जिंदगी के प्रश्नपत्र पर
अनुत्तरित अपठित गद्यांश सा,......प्रीति सुराना

10 comments:

  1. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 031/07/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका

      Delete
  2. बढ़िया है आदरेया-

    ReplyDelete
  3. ऐसा ही होता है,बातो को भूल कर बस जिद याद रह जाती है,शुभकामनाये

    ReplyDelete
  4. हर बहस का कभी कोई परिणाम नहीं निकलता

    ReplyDelete