Sunday, 9 September 2018

पीड़ा का परकोटा

पीड़ा का परकोटा

हाँ!
ओढ़े रखती हूँ
दुख का दुशाला
और बना रखा है
पीड़ा का परकोटा
अपने आसपास,...

जब जब खिली
जब जब महकी
जब जब खिलखिलाई
तब तब महसूस किया
जो तथाकथित अपने हैं
वो मेरे ही सुख से विचलित थे।

जो गैर हैं वो अचंभित थे
एक औरत और सुखी
कोई शिकायत नहीं जिंदगी से
त्रिया चरित्र या कोई नई माया होगी
या अबला दुख बताने से डरने वाली??

जाने क्या क्या न गुजरी लोगों के मन में,
अनेक अनबूझ सवाल
और हर कदम कोई न कोई बवाल??
थोड़ा सोचा, थोड़ा समझा
मनोविज्ञान भी काम आया
दुनिया का व्याकरण थोड़ा अलग सा है
और समीकरण थोड़ा अजीब,..।

आप सुखी क्यों हैं
ये दूसरों के दुख का सबसे बड़ा कारण है,
और सुख का प्रदर्शन
अपने दुखों को बढ़ाने का खुला आमंत्रण,
अपने पराये सभी जुट जाते हैं
गुप्तचर की भांति सुख के राज़ ढूंढने में
और दुखों के काँटे बोने में,..

जब से ये जाना
तब से
हाँ हाँ सिर्फ तभी से
सुखों को लगा दिए ताले परेशानियों के
और दुखों का पिटारा रख दिया सामने,..

आते है कई लोग
सहानुभूति का टोकरा लेकर,
पर बड़े बड़े ताले देखकर लौट जाते हैं,
इसी के साथ
कई बहुरूपिये रिश्तों के मुखौटे उतर गए,..

सुनो!
ये सिर्फ तुम जानते हो
मेरे सपने=तुम्हारा साथ
तुम्हारा विश्वास=मेरा समर्पण
दुनिया का सबसे सुखी जोड़ा
"हम-तुम",..

अब
दुनिया भी सुखी
मैं बेचारी, बदसूरत, बेबस औरत भी
सबसे सुखी
अपने दुखों के दुशाले में छुपी
पीड़ा के परकोटे के भीतर,....!
समझ रहे हो न तुम???

प्रीति सुराना

4 comments:

  1. आप सुखी क्यों हैं
    ये दूसरों के दुख का सबसे बड़ा कारण है,
    और सुख का प्रदर्शन
    अपने दुखों को बढ़ाने का खुला आमंत्रण,
    अपने पराये सभी जुट जाते हैं
    गुप्तचर की भांति सुख के राज़ ढूंढने में
    और दुखों के काँटे बोने में,.. बहुत सुंदर और सार्थक रचना

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  2. मन मंथन करती अभिव्यक्ति बहुत सुंदर ।

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