आजमा के देख ये भी कुछ पल
क्या मौन में छुपा है कोई हल
हल न भी मिले तो लाभ ही है
क्रोध की आग हो कुछ शीतल
कुछ घड़ी शरीर को दे विश्राम
कुछ घड़ी क्लेश ही जाए टल
दे आराम भावों के आवेग को
आवेश हो जाए शायद विफल
क्षमा, चिंतन और स्वाध्याय से
लौट आए शायद फिर मनोबल
आस है संशोधन की चित्त में
आस ये विश्वास में जाए बदल
'प्रीत' कर तप यही इस पर्युषण में
विकृतियां जीवन की सुधार चल,.... प्रीति सुराना
बहुत सुंदर
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