सूरज
सुबह जरूरी होता है सूरज का दीदार ,
शाम उसी के चले जाने का इंतज़ार,
गर्मी में जलाता है सूरज का रहना,
सर्दी में सुहाता है सूरज का होना,
बरसात में तरसाता है सूरज का विरह,
खुद नहीं जानता
सूरज कब सहनीय है और कब असह्य,
समय समय की बात है, जरूरत का व्यवहार है,
और लोग कहते हैं सूरज से सृष्टि को प्यार है,...
बताइए
आपका क्या विचार है
क्या ये प्यार है,...??
प्रीति सुराना
सुन्दर
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