दिन भर लड़ना
झगड़ना
आरोप प्रत्यारोप
जरा जरा सी बात पर
बिखरना
बिफरना
और फिर
बेचैनी भरे पल
बेवजह खुद पर झुंझलाना
बौखलाना
फिर हौले से खुद को समझना
गलती दोनों में से किसी की भी हो
जीना तो साथ ही है
एक पल भी गवारा नहीं
एक दूसरे की बिना
और आखिर में
फिर सीने से लगाकर
सारी तकरार भूल जाना
यही तो है हमारा सच्चा प्यार
सुनो!
कभी सोचा है
बचपना कब खत्म होगा हमारा
अरे यार
अब तो हमारे बच्चे भी बड़े हो गए हैं
जो हँसते है
हमारी हर सुलह के बाद
खिलखिलाकर,...
हमारे लिए
ये कहकर
"अब तो बड़े बन जाओ"
प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment