ग्रहण
सूरज स्थिर है
धरा घूम रही अपनी धुरी पर
बिना सीमा लांघें
मनाती रोज सूरज को
अपनी उद्दिग्नता तज कर
ताप से उपजा संताप कम कर दो
गाहे बगाहे चन्द्रमा
धरा का पक्ष लेकर
दोनों के बीच पड़ ही जाता
आज गलती से दोनों ही
बिल्कुल आमने सामने थे
अनिष्ट की आशंका से घबराकर
धरा चंद्र के सामने आ खड़ी हुई
सिर्फ ये समझाने के लिए
कि हम एक परिवार हैं
उलझो मत
शांत हो जाओ
माहौल बिगड़ने लगा
सूरज ने अपनी किरणों का सारा तेज
धरा को दिया
पर चंद्र को देने से इनकार कर दिया
कुछ ही पल में
चंद्र गहन अंधकार से व्याकुल हो उठा
चंद्र की कमजोरी शीतलता
सूर्य की ताकत उसका ताप
बीच में अंधेरे और उजाले की
सर्द-गर्म तासीर ने धरा की ऋतुओं को प्रभावित किया
इस ग्रहण का असर अब तक कायम है
गहन अंधकार के रूप में
क्या वाकई
सुख की भोर होने वाली है,...???
प्रीति सुराना
https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/07/blog-post_28.html
ReplyDeleteसुन्दर
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