चलो!
आज जीते हैं
कुछ पल
चुनौतियों के
एक दूजे के साथ,
तुम्हें लगता है
तुम हर बार सही होते हो
और मैं तुम्हारी बात न सुनकर
हर बार
करती हूँ भावनात्मक प्रतिक्रिया,
मुझे लगता है
मेरी भावनाओं को
समझ कर न भी समझने के बहाने
अपने तर्कों से
गलत ठहरा देते हो मुझे,
अबकी बार मुझे है स्वीकार
तुम बोलो, मैं सुनूँगी और समझूँगी,
पर तुम्हें भी सुनना, समझना और सहना होगा
मेरे अस्वीकृत विवाद की जगह
मेरे मौन में छुपा संवाद,....
वो भी बिना किसी तकरार,... प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment