चलो समझें
हम दोनों का मेल
क्यों असंभव
क्षितिज पार
धरा नभ मिलते
सुहाना भ्रम
सागर तट
रेत पर लेखन
जीवन सार
गोधूलि बेला
दिवस और सांझ
क्षितिज सम
चंद्र व सूर्य
दोनों नभ वासी
सदा विलग
संधि का काल
हमेशा ही पृथक
रात व भोर
कभी न साथ
जीवन व मृत्यु
जीवनभर
प्रीति सुराना
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