Thursday 19 April 2018

क्यों अंसभव

चलो समझें
हम दोनों का मेल
क्यों असंभव

क्षितिज पार
धरा नभ मिलते
सुहाना भ्रम

सागर तट
रेत पर लेखन
जीवन सार

गोधूलि बेला
दिवस और सांझ
क्षितिज सम

चंद्र व सूर्य
दोनों नभ वासी
सदा विलग

संधि का काल
हमेशा ही पृथक
रात व भोर

कभी न साथ
जीवन व मृत्यु
जीवनभर

प्रीति सुराना

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