Thursday, 8 January 2015

मेरे भी हालात,..

सागर की बूंदों जितने ही मन में हैं जज़बात,..
बनते बिगड़ते रहते हैं हरपल मेरे भी हालात,..
विधा कोई नही आती जिसमें भावों को ढाल सकूँ,..
इसलिए लिख देती हूं अकसर सीधे मन की बात,..प्रीति सुराना

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