सुन!!!!
मैं चाहती हूं
तू एक घने फलदार और छायादार
वृक्ष की तरह
बढ़े,.. फले,.. फूले...
मैं माँ हूं
जकड़े रखूंगी तेरी जड़ों को
धरती की तरह अपने भीतर,..
ताकि बाहरी तूफान तेरा कुछ न बिगाड़ सके...
पर मैं चाहती हूं..
तुझमे पनपे कुछ कांटे भी...
जिससे तू कर सके आत्मरक्षा,..
आज के परिवेश में पल रही अनेकानेक बुराइयों से..
और हां!!
इसलिए बनना होगा तुझे सहनशील भी...
क्यूंकि ज्यादा मीठे फलदार वृक्षों को
चोटें भी ज्यादा लगती है...,................. प्रीति सुराना
bahut badhiya...Tanmay ko janmdin ki bahut-bahut badhaai.
ReplyDeleteबेटे को जन्मदिन पर शुभाशीष।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (13-01-2015) को अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये..; चर्चा मंच 1857 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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उल्लास और उमंग के पर्व
लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेटे तन्मय के जन्मदिन पर सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक शुभाशीष!
मां की आशाओं की छाया
ReplyDeleteसुंदर भावों की बेल—
फैल गयी----कांटों- संग
चारो ओर---
sundar rachna
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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