Tuesday 18 August 2015

घर की देहरी

रास्ते मुश्किल हों कितने भी
जब मंज़िल का पता होता है
तो हौसले  बरक़रार रहते हैं,

कट ही जाता सफ़र तनहा भी
जब मालूम हो मंज़िल पर
अपने हमारा इंतजार करते हैं,

चलते हैं हमसफ़र बनकर साथ
दर्द-ख़ुशी, हंसी-मायूसी,मिलन-बिछोह
जैसी अनगिनत यादों के सिलसिले,

पर तन-मन की सारी थकान
दूर हो जाती है जब लौटकर हम
अपने घर की देहरी पर कदम रखते हैं,...
                                        प्रीति सुराना

4 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सबकी पहचान है , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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