रास्ते मुश्किल हों कितने भी
जब मंज़िल का पता होता है
तो हौसले बरक़रार रहते हैं,
कट ही जाता सफ़र तनहा भी
जब मालूम हो मंज़िल पर
अपने हमारा इंतजार करते हैं,
चलते हैं हमसफ़र बनकर साथ
दर्द-ख़ुशी, हंसी-मायूसी,मिलन-बिछोह
जैसी अनगिनत यादों के सिलसिले,
पर तन-मन की सारी थकान
दूर हो जाती है जब लौटकर हम
अपने घर की देहरी पर कदम रखते हैं,...
प्रीति सुराना
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सबकी पहचान है , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक आभार
ReplyDeleteहार्दिक आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
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