Tuesday 18 August 2015

आख़री ख़्वाहिश

हां!!!
हम दोनों ने
लगाई थी शर्त
एक दूसरे से,..

जो एक नहीं जी सकेगा दूसरे के बिन
वो आकर करेगा इंतजार
उस जगह
जहां हम पहली बार मिले थे,..

जो हारेगा
वो जीतने वाले को
देगा
मनचाहा उपहार,..

बधाई!!!!
तुम जीत गए
और
मैं हार गई,..

कब से कर रही हूं तुम्हारा इंतजार
उस जगह
जहां हम पहली बार मिले थे,..
कहीं तुम ये जगह तो नहीं भूल गए,.

देखो!!!
मैं उपहार में वो सारी चीजें लेकर आई हूं
जो तुमने मुझे दी थी
या जिनसे हमारी यादें जुड़ी थी,..

यही तो तुम चाहते थे ना,...???
मेरी आख़री ख़्वाहिश है
कि तुम्हारी हर ख़्वाहिश
पूरी करुं,...

सुनो!!!
तुम आ जाओ ना
सिर्फ एक बार,..
मेरी आख़री ख़्वाहिश की खातिर,....प्रीति सुराना

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...

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