Friday, 21 August 2015

रिश्तों से विरक्ति

मैं क्यूं न करुं तुमसे अपेक्षाएं???
मैंने नहीं देखा
कोई भी रिश्ता
जो अपेक्षाओं के बिना
बना हो,..

प्यार-मनुहार,
व्यापार-व्यव्हार,
उपकार-उपहार,
कोई न कोई अपेक्षा
वजह ज़रुर होती है हर रिश्ते की,..

मेरा रिश्ते की
बुनियादी जरुरत है
प्यार,..
तुम्हारा प्यार
जो मेरे लिए शक्ति है,..

और इसी
जीवनदायिनी शक्ति की
अपेक्षा से ही
मुझे आसक्ति है,..
क्यूं न करुं कोई अपेक्षा तुमसे????

कोई अपेक्षा न करना
"उपेक्षा से बचने का तरीका" भले ही हो
पर सच्चाई यही है,..
अपेक्षा विहीन रिश्ते का
कोई अर्थ ही नहीं,..

बल्कि वो तो
जिम्मेदारियों से
भागने के बहाने
होनेवाली
"रिश्तों से विरक्ति" है,..

और सच कहूं
मुझे विरक्ति नहीं प्यार है,..प्रीति सुराना

2 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. दिनांक 24/08/2015 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
    चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
    आप भी आयेगा....
    धन्यवाद...

    ReplyDelete