योद्धा
रुके जरूर थे
मेरे कदम कुछ पल
पर हारी नहीं हिम्मत
ठहरी
और ठहर कर सोचा
मरना अपने हाथ में नहीं है
पर जिंदगी
वो तो मेरी अपनी है
जीना होगा
जिंदा रहने के लिये
क्योंकि मर-मर कर जीना
सबसे बड़ी मूर्खता होगी,
और रुक जाना
कायरता,..
हाँ!
मैं हारी नहीं हूँ
चल रही हूँ
धीरे-धीरे
अपनी क्षमता के अनुसार
और ठान लिया
एक बार फिर
पैरों की तरह
मन को कमजोर नहीं होने दूँगी
क्योंकि कायर नहीं हूँ मैं
बल्कि
मैं एक जीवंत योद्धा हूँ जीवन समर की।
प्रीति सुराना
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