अदावत
प्रसव के दर्द के जैसा
सृजन का दर्द सहती हूं
तराने मैं नहीं गाती
तहत में बात कहती हूं
नज़र आते दर्द चहुँओर
तराने गाऊं भी कैसे
सुर न भी मिले लय में
ग़ज़ल के साथ बहती हूँ
ज़माने में मक्कारियाँ
पसरने लगी है जो दरदर
बुरी नीयत जहाँ देखूँ
बनकर गाज ढहती हूँ
भ्रष्टाचारी दुराचारी
कहीं से सामने आए
शब्दों के तरकश लिए मैं
सदा तैयार रहती हूं
भले प्रीति रखा है नाम
मेरे अपनों ने मिलकर मेरा
जब न हो प्रीत से भी काम
अदावत ठान लेती हूं।
प्रीति सुराना
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