Tuesday 21 May 2019

सपने तो सपने रह गए

अरमान अधूरे रह गए,
सपने तो सपने रह गए।

गुड़िया मैं बाबुल की रही,
पीड़ा न कभी कोई सही।
कलियों सी नाजुक रही,
बात यही बाबुल ने कही।
सब बचपन में ही रह गए,
सपने तो सपने रह गए।

नानी की परियों की कथा,
दादी के पुरखों की प्रथा।
बाबुल की खुशियों का हिस्सा,
मां की ममता वाला गुस्सा।
अब शेष किस्से ही रह गए,
सपने तो सपने रह गए।

बाबुल के घर में बचपना,
मां के आंचल में दुबकना।
भाई से लड़ना झगड़ना,
सखियों संग बनना संवरना।
सब यादों में ही रह गए,
सपने तो सपने रह गए।

रोका पर वो ठहरा नहीं,
फिर से बचपन लौटा नहीं।
लांघी बाबुल की देहरी,
लेकर आशाएं सुनहरी।
बंधनो में बंधकर रह गए,
सपने तो सपने रह गए। ,..प्रीति सुराना

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन निगेटिव में डंडा घुसा कर उसे पॉजिटिव बनायें : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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