Monday, 1 April 2019

ज़रा-ज़रा सी चोट

आँखे मूँदकर मैं अकसर कई नए ख्वाब बुनती हूँ,
दगा नहीं करती किसी से बस अपने दिल की सुनती हूँ,
टूटती नहीं हूँ समय की दी हुई ज़रा-ज़रा सी चोट पर,
किस दर्द में पलकें भिगोनी है ये भी मैं खुद चुनती हूँ

प्रीति सुराना

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