आँखे मूँदकर मैं अकसर कई नए ख्वाब बुनती हूँ,
दगा नहीं करती किसी से बस अपने दिल की सुनती हूँ,
टूटती नहीं हूँ समय की दी हुई ज़रा-ज़रा सी चोट पर,
किस दर्द में पलकें भिगोनी है ये भी मैं खुद चुनती हूँ
प्रीति सुराना
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आँखे मूँदकर मैं अकसर कई नए ख्वाब बुनती हूँ,
दगा नहीं करती किसी से बस अपने दिल की सुनती हूँ,
टूटती नहीं हूँ समय की दी हुई ज़रा-ज़रा सी चोट पर,
किस दर्द में पलकें भिगोनी है ये भी मैं खुद चुनती हूँ
प्रीति सुराना
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