हाँ!
आजकल
अपने आसपास
तनहाइयाँ बुन रही हूँ,..
अनकहा
अनसुना
अंतर्नाद सुन रही हूँ,..
भीड़ से
दिखावे से दूर
कुछ अलग सा गुन रही हूँ,..
लड़ते-लड़ते थककर
लड़ाई अपने अस्तित्व की
खामोशियाँ चुन रही हूं,....
प्रीति सुराना
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हाँ!
आजकल
अपने आसपास
तनहाइयाँ बुन रही हूँ,..
अनकहा
अनसुना
अंतर्नाद सुन रही हूँ,..
भीड़ से
दिखावे से दूर
कुछ अलग सा गुन रही हूँ,..
लड़ते-लड़ते थककर
लड़ाई अपने अस्तित्व की
खामोशियाँ चुन रही हूं,....
प्रीति सुराना
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