Wednesday, 3 October 2018

चुन रही हूँ,..

हाँ!

आजकल
अपने आसपास
तनहाइयाँ बुन रही हूँ,..

अनकहा
अनसुना
अंतर्नाद सुन रही हूँ,..

भीड़ से
दिखावे से दूर
कुछ अलग सा गुन रही हूँ,..

लड़ते-लड़ते थककर
लड़ाई अपने अस्तित्व की
खामोशियाँ चुन रही हूं,....

प्रीति सुराना

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