Wednesday 10 October 2018

*साझा संग्रहों से बेहतर विकल्प लघु पुस्तिकाएं*

*साझा संग्रहों से बेहतर विकल्प लघु पुस्तिकाएं*

बड़े बुजुर्गों कि एक सोच हुआ करती है कि किराये के बड़े से मकान के कुछ कमरे किराए पर लेकर रहने से बेहतर है अपनी खुद की छोटी सी कुटिया हो। समय बदलेगा, सामर्थ्य बढ़ेगा तो अपनी कुटिया को सपनों का महल बनाना आसान होगा ।
बस इसी तरह की सोच है जो साहित्य जगत में चल रहे साझा संकलनों की होड़ को बंद करेगी।
एक रचनाकार खासकर नवांकुर या ऐसे रचनाकार जो एक साथ कोई बड़ी पुस्तक निकालने में समर्थ नहीं हैं या किताबों के विक्रय-लाभ-हानि आदि पक्षों को सोचकर मन मसोस कर रह जाते हैं या फिर शामिल हो जाते हैं 20 से लेकर 100 रचनाकारों की भीड़ में जिसमें चंद पन्नो में सिमट कर रह जाती है उनकी भावनाएँ, कला और सपने। खुद की रचनाओं के बाद भी हिस्से में आता है साझा ख्वाब जो संपादक के नाम हो जाता है।
*ऐसे में बुजुर्गों की नसीहत को याद करते हुए एक बेहतर विकल्प के लिए प्रयास किया जा सकता है वो है लघु पुस्तिकाएँ।*
न्यूनतम मूल्य पर, आईएसबीएन सहित 16-24-32-40-48 पेज की किताबें भी डिजिटल युग में बड़ी आसानी से बनवाई जा सकती है। जो कि रचनाकार की खुद की रचनाओं का एकल संग्रह भी होगा और परिचय में खुद की पुस्तक के रूप में पाठकों से रचनाकार को परिचित करवाएगा। आज ईबुक और ई पत्रिकाओं के युग में आवश्यकतानुसार प्रतियाँ बनवाकर मुफ्त में या उपहार में बाँटी जाने के अतिरिक्त व्यय का वहन करने की बजाय लघु पुस्तिकाओं को ईबुक के माध्यम से बहुत सरलता से पाठकों तक पहुंचाया जा सकता है।
विशेष लाभ यह भी है कि भागम भाग के युग में पतली पुस्तकों को पाठक आसानी से पढ़ सकता है। मोटी किताबों को पढ़ने के लिए समय न भी मिले लेकिन ऐसी किताबों को आसानी से पाठक मिल सकते है क्योंकि ये जेब पर भी भारी नहीं होगी और न ही समय खाएगी।
इसलिए साझा संकलन की अपेक्षा लघु पुस्तिकाएँ एक बेहतर विकल्प है जो संभवतः पहचान के साथ साथ छोटे-छोटे प्रयासों के बाद लेखन में उत्तरोत्तर परिपक्वता के अवसर भी देगा।
तो सोचें समझें और एक बेहतर विकल्प का स्वविवेक से चयन करें।

*डॉ. प्रीति सुराना*
संस्थापिका- अन्तरा शब्दशक्ति प्रकाशन
www.antrashabdshakti.com

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