Sunday, 30 September 2018

अतिरेक

सुनो!
हमारे प्रेम का अतिरेक
नहीं सहने देता हमारे रिश्ते में
किसी का भी दख़ल
बौखलाहट
चिड़चिड़ाहट
झुंझलाहट
दहशत
वहशियत
तोहमत
हर दौर के बाद
लौट आना फिर रिश्ते की ओर
ये तय करता है
हमारे रिश्ते की दुनिया भी गोल है
इस गोले की परिधि के भीतर
चाहे जो हो जाए
सृजन से विनाश तक
सब कुछ संभव है
लेकिन सिर्फ तब तक
जब तक परिधि के दोनों अंतिम सिरे
प्रेम और विश्वास
जुड़े हैं एक दूसरे से,..
ये अटूट गठबंधन जब भी टूटा
तब आएगा
सिर्फ और सिर्फ
प्रलय
और तब
शेष न तुम रहोगे न मैं,...
हर बुरे दौर का दर्द मंजूर
बस सलामत रहे रिश्ते के दोनों छोर
ताकि जी सकें
हम-तुम

प्रीति सुराना

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