Friday, 24 August 2018

प्रीत की रस्में

2222 2121 22
खुश हूं तब तो मुसकुरा रही हूँ
जो बीता हँसकर सुना रही हूँ

मुझसे तुम नजरें नही मिलाओ
समझोगे नज़रें चुरा रही हूं

पलकें हैं शर्म से झुकी झुकी सी
क्यूं लगता है कुछ छुपा रही हूं

धड़कन मेरी तुम कभी न सुनना
वो सुनना जो गुनगुना रही हूं

आँखे कब भीगी पता नही है
जो मन में है वो बता रही हूं

कोरे कागज पर नही लिखा कुछ
कागज वो गीला सुखा रही हूं

तोड़ी न कभी *प्रीत की रस्में* भी
दिल से सब नाते निभा रही हूं

प्रीति सुराना

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