“सौ सुनार की एक लोहार की” हिन्दी भाषा में काफी प्रचलित मुहावरा है।
*कई सारे निर्बल लोग मिलकर जिस काम को करते हैं, उसी काम को सबल या मजबूत लोग एक ही बार में कर देते हैं।*
*सौ बातों का कड़ाई से एक जवाब दें तो भी इस मुहावरे का उपयोग होता है।*
*किसी काम को करने के लिए कोई धीरे-धीरे कई बार प्रयास के बाद पूरा करता है और कोई उसी काम को एक बार में ही सम्पन्न कर देता है।* तो भी कहा जाता है *“सौ सुनार की एक लोहार की।”*
वैसे तो मुहावरों और कहावतों का उपयोग अपनी बातों में सभी अपने अपने अर्थ में करते हैं, पर “सौ सुनार की और एक लोहार की” ऐसा इसलिए कहा जाता है। सुनार सोने के समान को बनाने के लिए हथौड़े को कई बार सम्भाल-सम्भाल के चोट से काम करता है और लोहार लोहे के समान बनाने के लिए हथौड़े से एक दो चोट में काम कर लेता है।
मैं किसी भी बात को किसी पर बेवजह लादने की बजाय एक ही बात हर बार कहती हूँ कि ये *मेरी व्यक्तिगत सोच है* जरुरी नहीं कि सभी सहमत हों क्योंकि सबकी सोच पर तन-मन-धन और जन के प्रभाव पर निर्भर करता है कि किसी बात का आशय आप किस प्रकार लगाते हैं।
*मेरा मानना जब कोई अपनी बातों या कार्यों से परेशान कर रहा हो, और आप चुपचाप सुनते सहते चले जाते हैं तब अचानक आप कोई ऐसा काम कर जाएँ जो सामने वाले के कार्य पर भारी पड़ जाए और मुँह तोड़ जवाब जैसा लगे। ऐसे में बिना बार-बार की खटपट के एक बार में ही विरोधी पक्ष को निरुत्तर करना "सौ सुनार की एक लोहार की" लगता है।
*सोने को गढ़ने के लिये लोहे की छोटी-छोटी छेनी-हथौड़ी और सोनार के हुनर से श्रृंगार के आभूषण और अनुपम कृतियाँ बनाई जा सकती है जबकि वही काम लोहार करे तो स्वर्ण के आभूषण बन ही नहीं सकते पर तोड़ना हो तो लोहार का एक वार ही काफी है क्योंकि बनाना बहुत कठिन प्रक्रिया है और बिगाड़ना एक वार, एक बात, एक चोट में भी संभव है जबकि सुनार को बिगाड़ने में भी सौ वार लग जाएंगे।
*सोने को गढ़ने और बिगाड़ने दोनों काम लोहे के औजारों से की जाती है, और सचमुच गैरों से मिली चोट पीड़ा से ज्यादा सबक देकर जीवन को संवारती, निखारती और काबिल बनाती है पर जब लोहा लोहे को पीटता है तो कुछ बने या बिगड़े अपनों के हाथों पीटे जाने का दर्द तो होता ही है। इस संदर्भ में भी लगता है कि सुनार के सोने पर लोहे से किये सौ वार भी उतनी पीड़ा नहीं देते जबकि लोहे को लोहे से पीटे जाने का दर्द बहुत ज्यादा होता है।
*कोई भी मुहावरा या कहावत बहुत सी कसौटियों पर कसे जाने के बाद ही बनते हैं।* जो हर परिस्थिति में सहित साबित होते हैं। अतः थोड़े शब्दों में पूरी व्याख्या संभव नहीं। *ये सिर्फ अपने साथ जुड़े अनुभवों का सार है।*
अंत में सिर्फ यही कहना चाहूंगी
*गहने को बारीकियों और सुंदरता से गढ़ना हो तो समय लगता है,*
*सुनार को बहुत श्रम और सोने को भी बहुत धैर्य लगता है,*
*लोहार का एक वार ही सोनार के सौ वारों पर भारी होता है,*
*पर संभलिए लोहा सिर्फ सोने पर नहीं अपने अपनों पर भी वार करता है।*
डॉ प्रीति समकित सुराना
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