इक्कसवीं सदी के
इक्कीसवें साल के
इक्कीसवें दिन में
जीवन के सभी उन्नीस-बीस पड़ाव
इक्कीस हों
खुशियाँ ही खुशियाँ हो
मन में न कोई टीस हो,
जीयें हर पल ऐसा
कि कल हो, न हो,
मन में न रहे मलाल
कि समय रहते न किया कोई काम,
अपनी परवाह, अपनों का खयाल,
मन मार कर न जीना पड़े किसी भी हाल,
जीवन भी खुशहाल रहे न केवल यह साल।
21/21
डॉ प्रीति समकित सुराना
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