Friday, 26 March 2021

साक्षात्कार

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर स्थानीय पत्रकारों की एक टीम शैली जी का साक्षात्कार लेने पहुंची।
एक पत्रकार ने पूछा आपने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की है आपको कैसा महसूस हो रहा है?
शैली ने कहा- बहुत अच्छा पर यह सम्मान और ख्याति अपने लोगों और अपने देश में मिलती तो सच्ची खुशी मिलती।
दूसरे ने सवाल किया- आपने स्त्री होकर आपने जो कार्य किये हैं वो अन्य स्त्रियों के लिए प्रेरणा है, आप उनके लिए कोई संदेश देना चाहेंगी।
जरूर, मैं अपनी सखियों से यही कहूँगी की पुरुष प्रधान देश में खुद को पुरुष जैसा बनाने की कोशिश कभी मत करना, हम स्त्रियाँ सशक्त भी हैं और यदि हमने स्वयं सक्षम बना लिया और अपने वैरों पर खड़े हो गए तो हम सब कुछ करने में समर्थ हैं। अबला नारी जैसे संबोधनों को स्वीकार न करते हुए अपने होने का महत्व समाज को साबित करके दिखाने का इरादा रखना।
तभी तीसरे ने आवाज उठाई- मैडम आपका साक्षात्कार लेने वाले हम पुरुष ही हैं और आपको सम्मान देने वाले भी हम पुरुष ही हैं फिर समाज आज भी पुरुष प्रधान है ये कैसे कह सकती हैं आप?
शैली ने बेबाकी से जवाब दिया आज भी स्त्री में सीता और पुरुष में बुद्ध की छवि तलाशी जाती है और जब स्त्री सीता और पुरुष बुद्ध जैसे हों तो क्या सोते हुए पति और बच्चों को छोड़ कर स्वयं की तलाश में निकली स्त्री को सहज स्वीकार करेगा ये समाज या इसी स्थिति में लौटे पुरुष से अग्निपरीक्षा ली जाएगी? 
स्त्री स्वयंसिद्धा तो बन सकती है लेकिन आज भी समाज उसके महत्व को पूरी तरह स्वीकार नहीं पाता।
साक्षात्कार में अगले सवाल के बादले सभा में सन्नाटा छा गया।
शैली को महिला सशक्तिकरण और सक्षमीकरण के लिए कितने ही सम्मान मिले लेकिन आज का साक्षात्कार में छाया सन्नाटा उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण पल बन गया।

डॉ प्रीति समकित सुराना

0 comments:

Post a Comment