बूढ़े बरगद पर
लिपटे थे
अनगिनत धागे मन्नत के
मैं भी मांगना चाहती थी
एक मन्नत
मन ने कहा
अपने लिए कुछ भी मांगा हुआ
कहाँ मिलता है
कुछ सोचकर
मैं भी बाँध आई
मन्नत का एक धागा
विनती कर बूढ़े बरगद से
कि
तुम पर बंधे सारे धागों से बंधी
मन्नतें पूरी हो,...
लौट आई
इस सुखद एहसास के साथ
जाने कितने दिलों को सुकून मिलेगा
मेरी एक मन्नत से!
डॉ प्रीति समकित सुराना
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