अब तो मेरी अर्ज सुन लो
उंगली गुरु सा थाम लो
हाथ रख दो सिर पे मेरे
प्रतिपल तुम्हारा ही नाम लूँ,..!
भूल जाना चाहूँ सब कुछ
जो घटा या घट जाएगा,
हर भय भुला तेरी शरण में
विकल मन कल पाएगा,
समझा रही हूँ कब से खुद को
सबर से जरा काम लूँ,
फिर कहूँ मेरी अर्ज सुन लो
उंगली गुरु सा थाम लो
हाथ रख दो सिर पे मेरे
प्रतिपल तुम्हारा ही नाम लूँ,..!
साथ गुरु का पाया है अब तो
ग्रन्थियाँ सब खोल दो
रे मन, कुछ मन में रखो मत
सारी बातें बोल दो
आशीष यूँ ही मिलता नहीं
त्याग कर कुछ दाम दूँ,
फिर कहूँ मेरी अर्ज सुन लो
उंगली गुरु सा थाम लो
हाथ रख दो सिर पे मेरे
प्रतिपल तुम्हारा ही नाम लूँ,..!
कुछ नहीं है पास मेरे
सिर्फ भावों के सुमन हैं
हाथ मेरे दोनों खाली
भाव से भरपूर मन है
भावों का सहज समर्पण
तुझ शरण मैं आज कर लूं,..!
फिर कहूँ मेरी अर्ज सुन लो
उंगली गुरु सा थाम लो
हाथ रख दो सिर पे मेरे
प्रतिपल तुम्हारा ही नाम लूँ,..!
आज तुम चरणों में बैठी
पीयूष वाणी की आस में
मन की व्यथा सब जान लो
दर्शन करुँ लिए प्यास ये
कृपा की एक दृष्टि पड़े तो
पुण्योदय हुआ यह मान लूँ,...!
फिर कहूँ मेरी अर्ज सुन लो
उंगली गुरु सा थाम लो
हाथ रख दो सिर पे मेरे
प्रतिपल तुम्हारा ही नाम लूँ,..!
डॉ प्रीति समकित सुराना



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