Friday, 26 March 2021

लिखते लिखते सीखा

आँखों की नमी में दर्द को दबाना,
और अपने आँसू  सब से छुपाना।

हँस-हँसकर मिलना सबसे लेकिन,
जरुरी हो बस वही बात समझाना।

जिससे हो जान से ज्यादा प्यार,
उस पर भी अधिकार न जताना।

अब लिखते लिखते सीखा मैंने,
शब्दों में लिखकर भी कुछ न बताना।

डॉ प्रीति समकित सुराना

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