आँखों की नमी में दर्द को दबाना,
और अपने आँसू सब से छुपाना।
हँस-हँसकर मिलना सबसे लेकिन,
जरुरी हो बस वही बात समझाना।
जिससे हो जान से ज्यादा प्यार,
उस पर भी अधिकार न जताना।
अब लिखते लिखते सीखा मैंने,
शब्दों में लिखकर भी कुछ न बताना।
डॉ प्रीति समकित सुराना



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