Friday, 26 March 2021

खुद को ही समझाऊं मैं,..!

घाव किसे दिखलाऊँ अपने,
पीड़ा क्या बतलाऊं मैं,
पोछूँ खुद ही आँसू अपने,
खुद को ही समझाऊं मैं,..

अपनों से उम्मीदें बांधे,
नित रचती सपनों का घर,
मतलब की चलती फिर आंधी,
सब कुछ जाता बिखर-बिखर,
वादे करते नेताओं से,
धोखे सब से खाऊं मैं,..

घाव किसे दिखलाऊँ अपने,
पीड़ा क्या बतलाऊं मैं,
पोछूँ खुद ही आँसू अपने,
खुद को ही समझाऊं मैं,..

मैं जिस राह रखूँ पग अपने
फैले शूल हैं पग-पग पर,
सोच समझ कर मैं अपनों को
कैसे भेजूँ उस पथ पर,
पहले खुद ही साफ करुँ
सारे काँटे चुन कर मैं,..

घाव किसे दिखलाऊँ अपने,
पीड़ा क्या बतलाऊं मैं,
पोछूँ खुद ही आँसू अपने,
खुद को ही समझाऊं मैं,..

जीवन को ऐसे ढाला है
जैसे कोई मधुशाला,
कोई खुशियाँ बाँट रहा है,
कोई दे गम का हाला,
जिससे जो भी मिल जाए,
सब सहकर जी जाऊं मैं,..

घाव किसे दिखलाऊँ अपने,
पीड़ा क्या बतलाऊं मैं,
पोछूँ खुद ही आँसू अपने,
खुद को ही समझाऊं मैं,..!

डॉ प्रीति समकित सुराना

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