जहाँ मैं हूँ
वहाँ होना
मैं सचमुच कभी नहीं चाहती थी,..
और
जब तक नहीं चाहती थी
तब तक
अपने होने के सुखद एहसास में भी
खीझ शामिल रहती थी
अब मैं केवल होना चाहती हूँ,...
जहाँ हूँ, जैसी हूँ, जब तक हूँ,
मैं हूँ,..... इस संतुष्टि के साथ,
अब सुख देता है
वहाँ होना
जहाँ मैं हूँ,...!
डॉ प्रीति समकित सुराना



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