Saturday 9 January 2021

मैं लौट आई हूँ!

हाँ!
बहुत घबराई हुई थी मैं
एक दम सहम गई थी
एक ही पल में,
यूँ लगा मानो पैरों तले जमीन नहीं है!
बड़ी हिम्मत करके
नज़र उठाई शायद कोई सिर पर ही हाथ रख दे,
मगर
स्तब्ध थी
जिनपर मेरी नज़र सबसे पहले पड़ी
उन्होंने नज़र मिलते ही कहा
"मुझे बहुत डर लग रहा है"
फिर
उस एक पल ने, एक वाक्य ने 
मानो मेरे आत्मविश्वास की धज्जियाँ उड़ा दी,
अचानक 
आँखों के सामने से चलचित्र से गुजरे 
मम्मी-पापा, बच्चे, पति, परिवार, दोस्तों के चेहरे
और मैंने खुद को ही झकझोरा,
कोई साथ दे न दे,
कोई साथ हो न हो,
मैं अपना साथ नहीं छोडूंगी,
लड़े बिना हारना फितरत नहीं है मेरी,
और फिर
मैं ही तो कहती हूँ सबसे
अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होती है
क्योंकि जब जरुरत होती है
तब साथ वही छोड़ते हैं जो साथ रहते हैं
तो साथ के भ्रम में उम्मीदें पालना ही क्यों?
मैं
उठी, चली, लड़ी और हारी नहीं!
ये भी नहीं कहूँगी 
कि जीत गई
क्योंकि मेरा विश्वास हारा है,
खुशी इस बात की है
कि जीत गया आखिर में
मेरा आत्मविश्वास
मेरी इच्छाशक्ति और मनोबल के दमपर!
ये सच है
कि
इच्छाएँ कमजोर करती है
और इच्छाशक्ति हौसला देती है,
और
अपने हैं तो सपने है
सपने है तो इच्छाएँ है
इच्छाएँ है तो जरूरी है इच्छाशक्ति
और इच्छाशक्ति के लिए जरुरी है अपने,
वो
जिनके लिए मेरा होना ही मायने रखता है
जुड़ी है जिनकी जीवन डोर
मेरी सांसों से,...!
सुनो!
मैं लौट आई हूँ!

डॉ प्रीति समकित सुराना

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