जब
खुद को रखना होता है
बेवजह की बातों में उलझाकर,
तब ध्यान भटकना तो दूर
पल भर को भी
कोई दूसरा खयाल भी
जेहन में टिकता ही नहीं,...
आज
सोचना चाहती हूँ
कुछ भी न सोचूँ
पर हर लम्हा-हर घड़ी
जेहन में जड़ें जमा रही है
तनहा, उदास, मायूस
सीली सीली सी ये शाम,...
सबसे दूर खुद के करीब!
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2001...यात्रा के अनेक पड़ाव होते हैं...) पर गुरुवार 07 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसदैव खुश रहो
ReplyDeleteवाह अप्रतिम सृजन।
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