हाँ!
मैं आराम से हूँ
पर वो जिंदगी कहाँ है
जिसमें
तूतू-मैंमैं थी,
खाने की मनुहार थी
न खाने की जिद थी
आसपास अपनों का शोर था
घर का सबसे अलग सा कोना
जो मेरा अपना था
जहाँ सपने थे
अपने थे, बच्चे थे,
हँसी थी, गुस्सा था
कुछ करने की इच्छा थी,
कुछ कर गुजरने का जुनून था
सुनो!
यहाँ जो तुम भी नही हो
तो साँसे तो है
पर वो जिंदगी कहाँ है,..?
डॉ. प्रीति समकित सुराना
नव वर्ष मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।
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