बस
चलते रहो
और चलते-चलते
राह पर से
पत्थर और काँटे हटाते चलना,
राह में कोई रुकावट हो
जो दूर कर सको
तो जरुर करना
क्या पता
तुम्हारे बाद तुम्हारी तरह ही
कोई अकेला इसी राह पर आये
तो उसे इन सब तकलीफों से गुजरना न पड़े
यकीनन सुकून मिलेगा
कि तुमने किसी को आगे बढ़ने में मदद की
वरना दुनिया भरी पड़ी है
आगे बढ़ने वालों की टाँग खींचने वालों से,....!
हाँ!
शब्दशः यही कहा
मेरे मन ने मुझसे
क्योंकि सहा है उसने भी दर्द बहुत
आगे बढ़ते हुए कदमों को रोकने के लिए
टाँगों के खींचे जाने का,...!
इसलिए सबसे बार-बार कहती हूँ
बस चलो
और
चलते रहो,...सतत!
यह भी सफलता का एक मंत्र है!
डॉ प्रीति समकित सुराना
सकारात्मक सृजन।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDelete