Saturday, 16 January 2021

आभार सारी बाधाओं, रुकावटों और विघ्नों का

*आभार सारी बाधाओं, रुकावटों और विघ्नों का*

सितारे इतने तो बुलंद नहीं थे मेरे, करना पड़ा।
खुद को साबित करना था तो खुद से, लड़ना पड़ा।

रातों को जाग-जागकर हज़ारों सपने बुने,
फिर रोज सुबह उठकर काम में भिड़ना पड़ा।

खाली-खाली थे कुछ सपने रेखाचित्र की तरह,
रंग हौसलों के उनमें खुद ही भरना पड़ा।

लोगों को दिखता रहा कि चमन खिल उठा है मेरा,
पर एक सच ये भी है मुझे ही बीज बनकर गड़ना पड़ा।

मूर्ति जाने लगी है हमारे भी साकार हुए सपनों की,
साकार करने के लिए, पहले मनचाही मूर्ति गढ़ना पड़ा।

कमजोरियाँ, सवालों, इल्ज़ामों के टीले बहुत बनाए गए,
सबकुछ सहकर जवाब में सारे पहाड़ चढ़ना पड़ा।

आभार सारी बाधाओं, रुकावटों और विघ्नों का,
जिनको हराने के लिए हर हाल में मुझे चलना पड़ा।

गनीमत है याद थी बातें मुझे महापुरुषों की,
घर को रौशन करना था तो चिराग बनकर जलना पड़ा।

*डॉ प्रीति समकित सुराना*
संस्थापक
*अन्तरा शब्दशक्ति संस्था एवं प्रकाशन*

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