खोई रहती हूँ तुम्हारी याद में
अपने दर्द को खुद में समेटे,
खयालों को रखा बहुत तरतीब से
जिसके हर पल में तुम ही हो,
सपनों की नींव
तुम्हारी चाहतों की जमीं पर डाली है,
मेहनत का रंग भी तुम्हारे ही
एतबार से भर पाई,
सारे एहसासों के तार जुड़े रहे
हमेशा तुमसे,
मानों कठपुतलियों से नाचते हों तुम्हारी ही मर्जी से,
बस सालती है हर बार ये बात,
कि तुम्ही रहते हो बेखबर हर बात से,
और अचानक आकर ये पूछ लेते हो कि
*तुम कहाँ डूबे हुए हो?*
मैं चुप ही रहती हूँ जवाब में
क्योंकि जानती हूँ
इश्क में डूब जाना ही इश्क की कामयाबी है।
इंतजार में हूँ कभी तुम भी डूबोगे जरूर,... यकीनन!
डॉ प्रीति समकित सुराना
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteGood blog!!
ReplyDeletemdh spices