जीवन की गाड़ी
कुछ दिनों से
स्वास्थ्य और पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ
कुछ अवसादजनक परिस्थितियों ने घेर रखा है,...
सोचती हूँ हार जाऊँगी
क्योंकि
बहुत चीखती हैं अंतस की तनहाइयाँ,..
कभी-कभी लगता है
ये तन्हाइयों में हो रहा कोलाहल
जो नहीं सुन सकता मेरे अलावा कोई और,..
कहीं मेरी जान न ले ले,..
पर
हारती नहीं मैं
क्योंकि
उम्मीदों का एक सिरा
बांधकर रखती हूँ
अपने आँचल के एक किनारे में
हमेशा,
मन्नत की गाँठ की तरह
जो देता है हिम्मत
हो रहे बेवजह के शोर से
जीत जाने को
मेरी खामोशी से,...!
सच
इस तरह
अवसाद का हर दौर गुजर जाता है
और
हर बार मैं खुद को समझाती हूँ
खुशी और गम दोनों नहीं रहते
रहता है
तो बस जीवन
शोर और सन्नाटे तो सिर्फ पड़ाव है
चलते रहो दोनों पहलुओं के साथ
क्योंकि
जीवन की गाड़ी भी एक पहिये पर नहीं चलती।
डॉ. प्रीति समकित सुराना
यही जीवन है। शुभकमनाएं।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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