जीवन
जीवन
एक कालचक्र
जन्म से मृत्यु तक
कर्म, धर्म और मर्म
यही जीवन का पाथेय,
परिवार साथी
समाज साक्षी
और
आत्मा वाहक
यही सत्य!
यही शिव!
यही सुन्दर!
किन्तु आदि और अन्त
दोनों ही सिरों से जीव सदैव अनभिज्ञ
जो बीत गया सो बीत गया
जो आने वाला है वह अनिश्चित है
किस पल में जाने क्या हो
इसलिए जीयो हर पल को
पूरी शिद्दत से
मानो यही पल जीवन है,..
ये जीवन है
इस जीवन का यही है रंग रुप,...
सुनते हुए, महसूस कर रही हूँ अभी-अभी
डॉ. प्रीति समकित सुराना
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