Sunday, 1 November 2020

जरा सी देर में

बिखर जाते हैं मोती
रिश्तों के, नातों के,
विश्वास के, आस के
अपनों के सपनों के
जो टूटे या उलझे हमारा मन
'मैं' के जाल में,...!

फिर
रह जाता है जीवन
सिर्फ और सिर्फ मलाल में,
नहीं बनती वैसी ही माला
फिर किसी हाल में!

हाँ!
जरूरी है बचना 
अहम और वहम से
कहीं फंस न जाएं
इसके जंजाल में,...!

डॉ प्रीति समकित सुराना

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