मानो
तारों से भरा आसमान हो
और जुगनुओं से भरी धरा
फिर भी रात
सिसकती सी, तड़पती सी,
बिल्कुल तन्हा
पर मन बहुत मजबूत है मेरा
कहता है
सपने बुन, मंज़िल चुन,
और चल उस राह पर
जिसमें सब साथ दें तो अच्छा
छोड़ दें तो
सिर्फ जुदाई का दर्द हो
ऑंसू बहा, मन का गुबार निकाल
पर रुक जाना नहीं तू कहीं हार के,
लक्ष्य तेरा है
तुझे ही पूरा करना है
सच
मुझे बहकाती नहीं, संभाल लेती है,
हाँ! मेरी तन्हाई ऐसी है,..!
डॉ प्रीति समकित सुराना
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