Sunday 1 November 2020

*स्वयं चुना एकांत**(सेल्फ आइसोलेशन)*

*स्वयं चुना एकांत*
*(सेल्फ आइसोलेशन)*

समसामयिक परिस्थितियों ने 
एक नया मोड़ दिया 
हमारी जीवन शैली को
जो बहुत जरूरी भी है और कारगर भी
वो है *स्वयं चुना एकांत (सेल्फ आइसोलेशन)!*

*मैं बिल्कुल भी ठीक नहीं हूँ*
थक गई थी सबको यह बताते बताते 
कि 
क्यों ठीक नहीं हूँ, 
क्या ठीक नहीं है, 
किसके कारण ठीक नहीं हूँ,
किसके लिए ठीक नहीं हूँ!

तब स्वयं चुना एकांत 
(सेल्फ आइसोलेशन)
शरीर से सबके बीच उपस्थित रही
लेकिन मन और मस्तिष्क को किया
बहुत गहराई में विस्थापित
जिम्मेदारियों का सतत निर्वहन करते हुए भी
जीये कुछ दिन
सिर्फ और सिर्फ अपने साथ!

मन को कहा भटकना छोड़ो
मस्तिष्क को कहा सोचना रोको
केंद्रित किया
अंतस के वातावरण को शुद्ध करने में,
अतीत के कुछ खरपतवार उखाड़ फेंके
बोये कुछ नए अरमान, नए सपने!

टूटे फूटे भाव, नासूर बनते ज़ख्म, 
कतरन और उतरन को निकाल कर 
उनका अंतिम संस्कार किया,
जिन रास्तों की मंजिल का पता ही नहीं था
उन्हें जीवन से तिरोहित किया
मन के आंगन की कर ली सफाई 
और की कुछ आंतरिक सज्जा (इंटीरियर डेकोरेशन)!

भविष्य के लिए वर्तमान को
अच्छे भावों, खुली हवादार मानसिकता,
स्वजनों की उत्तम खाद 
और स्वाभिमान के पानी की भरपूर व्यवस्था करके
एक खूबसूरत बगीचा भी रखा मन के आंगन में!

और जब सब कुछ ठीक लगने लगा
तो एक बहुत जरूरी चीज जुटाई
वो है आत्मविश्वास का मजबूत ताला
जिसकी चाबी 
अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से गढ़वाई
जिसे रखना है 
अब सिर्फ अपने कब्जे में!

मेरा जीवन मेरी संपत्ति है
मेरा मन मेरा संग्रहालय है
और मेरा मस्तिष्क मेरे जीवन का सुरक्षा कक्ष
कोई कबाड़खाना नहीं 
कि कोई भी आए और डाल जाए 
फालतू और बेकार के विचारों का कचरा,
अब किसी का अनावश्यक हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं!

हाँ!
आज तमाम निर्णयों और स्वयं से स्वयं की मुलाकात के बाद,
अपनी *मरम्मत (रिपेयरिंग)*, 
सजावट *(इंटीरियर डेकोरेशन)*, 
और *नवीनीकरण (रेनोवेशन)* के बाद
लौट आई हूँ अपने लिए चुने हुए 
सर्वोत्तम अपनों और सपनों के लिए
अपने अपनों के पास,...
एक लंबे अंतराल के बाद
*स्वयं चुने एकांत (सेल्फ आइसोलेशन) से बाहर!*

सुनो!
*स्वागत नहीं करोगे हमारा?*

*डॉ प्रीति समकित सुराना*

0 comments:

Post a Comment