Friday 23 October 2020

आज बहुत रोई

बहुत खटक रहा था
कुछ आँखों में
शायद 
कुछ अधूरे सपने
कुछ अधूरे अपने
फिर  
तुम्हारे काँधे न सही
अपने तकिये की कोर भिगोई
मैंने अपनी आँखें 
आँसुओं से धोई
हाँ! आज मैं बहुत रोई
तब जाकर कुछ देर चैन से सोई..!

डॉ प्रीति समकित सुराना

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