कैसी चली है ये हवा किस ओर से,
बहने लगी है पीर देखो कोर से।
कहने लगी हूँ बात दिल की मैं जिसे,
सब कह रहे है कह रही चितचोर से।
जो भाग कर जाने लगूं छोड़ पहलू,
वो बांध लेता है मुझे मन डोर से।
रुठ कर कहीं जाने नहीं वो दे रहा,
करने लगे बदमाशियाँ वो जोर से।
मैं लाज से भर जो कहूँ तू छोड़ दे,
झलके तभी ही प्रेम हर इक पोर से।
मैं राह भी तकने लगूं जो दिखता नहीं,
आदत हुई अब देखने की भोर से।
ये जानती हूँ प्रीत उससे है मुझे,
धड़कन धड़क कर यह बताती शोर से।
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
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