Thursday 2 July 2020

*"क्या वाकई सोशल मीडिया आज की जीवन शैली का अभिन्न अंग बन चुका है?"*


*"क्या वाकई सोशल मीडिया आज की जीवन शैली का अभिन्न अंग बन चुका है?"*

मैं 2011 सालों से सोशल मीडिया से जुड़ी हूँ और लगभग हर पड़ाव के बाद मैंने सोशल मीडिया को केंद्रित करके कभी कविता, कभी कहानी, कभी लेख कुछ न कुछ लिखा है। आज फिर एक बार सवाल है कि "सोशल मीडिया का जीवन पर प्रभाव क्या और कितना? क्या वाकई सोशल मीडिया आज की जीवन शैली का अभिन्न अंग बन चुका है?"

*मैं मानती हूँ हाँ!*

क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग के काल मे सोशल मीडिया अपनी भावनाओं, अपने विचार, अपनी समस्याएं, अवसर और अवसाद से दूरी के लिए अहम भूमिका निभा रहा है। त्वरित अपनी बात को पूरी दुनिया के सामने रख पाना सोशल मीडिया के कारण ही संभव हो पाया है। कला, रिश्ते, व्यवसाय, अध्यात्म, देशप्रेम कोई भी भाव आज सोशल मीडिया से अछूता नहीं है।

*हर सिक्के के दो पहलू होते हैं सकारात्मक और नकारात्मक।*

मानव समाज को प्रभावित करने वाले चार कारक *"तन-मन-धन-जन"* । इन सभी कारकों पर सोशल मीडिया के दोनों पहलुओं का असर है। हम समाज की इकाई होने के नाते प्रभावित हुए बिना नही रह सकते। आज मैं अपनी बात इन्ही चार कारकों के सकारात्मक और नकारात्मक बिंदुओं को क्रमानुसार लेकर कहूंगी।

*"तन"*
सोशल मीडिया एक *लत* है जो मोबाइल कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लगातार संपर्क में रहने से आंखों , रीढ़ की हड्डी सबंधी समस्याओं और मोटापे का सीधा सीधा उत्प्रेरक है। साथ ही इससे निकलने वाले रेडिएशन का भी शरीर पर बहुत बुरा असर होता है। 
लेकिन यही उपकरण शारीरिक श्रम और समय की बचत भी करता है। कार्य क्षमता सरलता से उपलब्ध जानकारियों की वजह से कई गुना बढ़ी है। दूरियों के कारण जिन कामों को करने की सूचना भी मुमकिन नही था वही काम घर बैठे आसानी से हो जाते हैं। यातायात से होने वाले खर्च और थकान से भी शरीर को अपेक्षाकृत राहत मिलती है।
जो लोग इसे बुराई की जड़ मानते हैं उनके लिए मेरी एक ही सोच की *बुराई और अच्छाई एक ही सिक्के के दो पहलू हैं अपने क्या देखा क्या चुना ये आपकी पसंद का परिणाम है।*

*"मन"*
विदेश में बसा बच्चा जिसे देखने को मां बाप की आंखें तरस जाती थी वो इसी सोशल मीडिया की वजह से उसे रोज देख पाते हैं सुन पाते हैं सुख दुख में शामिल हो पाते हैं। पास रहकर जिन रिश्तों में दूरियों का दुख सालता है वो दूर रहकर भी इन्ही माध्यमों के चलते सुख में बदलते देखा जा सकता है। 
एक ओर सोशल मीडिया ने एक नया ही परिवार और समाज गढ़ डाला है जहाँ आभासी दुनिया जैसा कुछ भी नही। सब कुछ वैसा ही है जैसा वास्तविक जीवन मे है। 
लोग वो फ़ोटो जरूर शेयर करते हैं जिसमे एक साथ बैठकर सभी अपने मोबाइल में व्यस्त हैं क्या कभी ये सोचा कि मोबाइल की वजह से सब घर पर एक साथ रहते और एक साथ बैठते तो हैं। घर से बाहर जाने के बहाने ढूंढने से बेहतर है घर पर रहकर भी अपनी अलग जिंदगी जी लेना। 
आभासी दुनिया के आभासी सुख वास्तविक जीवन के दुख और परिस्थितियों से लड़ने का हौसला बढ़ाते हैं। कला और वाणिज्य को एक ऐसा नया धरातल मिला है जो काम पहचान मान सम्मान के कई रास्ते खोलता है। चार दीवारों की भीतर भी इतनी संभावनाएं इसी नये समाज जिसे सोशल मीडिया या आभासी दुनिया कहते है ने ही दी है । अकेले रहकर अकेलापन हावी न हो मन अवसाद से न घिरे इसलिए सबके बीच अकेला रहकर आभासी दुनिया मे जी लेने में क्या बुराई है।
मोबाइल एक तरफ झूठ बोलने की मशीन है पर ये भी सोचिए जिन चीजों के लिए और जिन शौक और रुचियों के साधन दुनिया भर में ढूंढते फिरते थे वो सब कुछ हमारी जेब में है। घर बैठे बिजली का बिल भी और आज रिलीज हुई मूवी भी। पिज्जा और बर्गर भी और दवाई और अन्य सहायता भी। 
इसलिए फिर कहना चाहूंगी *जिन्हें सिर्फ काला दिखता है वो उजाले से अंधेरों को देख रहे होंगे, मैंने अपने अंधेरों में रहकर रोशनी तलाशी है।*

एक महत्वपूर्ण बात सोशल मीडिया पर रिश्ते जरूर बनाएं लेकिन *"रिश्तों का चयन सावधानी से करे"*

देखो परखो फिर बुनो कोई रिश्तों की पोशाक,
अनजाने में चिंगारी पे ढकी ना हो कहीं राख,
आभासी एहसासों से बुनो अगर सपनों की दुनिया,
बस याद रखो सपनों में भी खुली रखो तुम आंख,...।
आजकल हम सभी रात दिन मोबाइल से चिपके रहते हैं। मोबाईल और कंप्यूटर के जरिये हम अनेक सोशल साइट्स से जुड़ते हैं।इन साइट्स के माध्यम से अनेक मित्र बनाते हैं,.. कई रिश्ते जोड़ लेते हैं,..फिर होता है नंबरों का आदान-प्रदान, ईमेल और एड्रेस का आदान-प्रदान।उसके बाद शुरू होते हैं बातों के अंतहीन सिलसिले । अकसर ऐसे रिश्तों में पाया गया है कि लोग इतने दीवाने हो जाते हैं की सोना-जागना,खाना-पीना,आना-जाना या यूं कहिये की जिंदगी से जुड़े हर काम साथ साथ या एक दूसरे से पूछ या बताकर करने लगते हैं। 
और फिर ऐसा मुकाम आता है जब रिश्ते को सच में बदलने के इरादे और वादे किये जाते हैं,..। जब रिश्ते सच्चे होते हैं तो इससे बढ़कर कोई ख़ुशी की बात जीवन में शायद ही कोई होती हो,..। पर अगर इससे उल्टा हुआ यानी सोशल साइट्स सर समय बिताने का जरिया हुआ तो,......???

क्या आपने कभी सोचा है????

मोबाईल मे "रिजेक्ट लिस्ट" "ब्लॉक बाई एड्रेस",..सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर "ब्लॉक" आदि सुवधाओं के कितने फायदे हैं??? शायद हां,..इन फायदों से हम सभी वाकिफ होंगे,....। 
पर क्या कभी आपने ये सोचा है????
इन माध्यमों से हम बहुत सारे रिश्ते बनाते हैं,..कुछ जाने,..कुछ अनजाने,....रिश्ते 
जिनसे हम अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं,... इस अभिव्यक्ति के साथ जब कुछ नए दोस्त बनते हैं,... और भावनाओं से हम इस तरह जुड़ जाते है,..
कि वो ऱिश्ते जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं,....।

पर क्या ये रिश्ते टिकाऊ हैं????

हर सिक्के की तरह इस सिक्के के भी दो पहलू हैं,..........। जंहा एक तरफ हमें अच्छे दोस्त मिलते है,...वहीं दूसरी तरफ हमारी भावनाओं से खिलवाड़ कर रहा हो तो???? और जब ये नए अनजान रिश्ते हमारे इन भावनात्मक रिश्तों से उकता जाते हैं,......तब उपयोग करते हैं इन सुविधाओं का,....।।।।
फिर शुरू होता है,...निराशा और अवसाद का दौर,...।।। जो आभासी दुनिया के बाहर हमारी वास्तविक जिंदगी को बरबाद करने के अलावा जानलेवा भी हो सकते है,.....।।
सावधान !
कहीं हम भी इस दौर से गुजरने की तैयारी में तो नहीं हैं ,....??

*"धन"*
आय, कला और शिक्षा के अनगिनत साधन और सुविधाएं घर बैठे सोशल मीडिया के माध्यम से ही संभव है। आज डिजिटल इंडिया की कल्पना में तरक्की की संभावनाएं अपार है। धन के साथ ईंधन भी बचत भी होती है और जो ये कहते हैं बिजली की खपत बढ़ती है तो वे अनुमान लगाकर देखें कोई काम खुद जाकर करने से ज्यादा मोबाइल या इंटरनेट के माध्यम से किये जाने में श्रम, लागत, व्यय और समय की बचत की अपेक्षा से बिजली और रिचार्ज की सुविधा का खर्च कितना सस्ता है। उदाहरण के लिए बिजली बिल टेलीफोन बिल, टेक्सेस रेलवे टिकिट, बैंकिंग, ट्यूशन सबकुछ घर बैठे हो रहा इससे जो खर्च आने जाने में समय और पैसे का बचता है वही दूसरे कामों में या अपने के लिए या अपने अपनो के लिए उपयोग किया जा सकता है। 
फिर मेरा विचार ये कि *बचत को शौक पूरे करके खत्म करना है या भविष्य मजबूत करना है ये आपकी आर्थिक स्थिति और मानसिकता पर निर्भर करता है।* यदि परिस्थिति कमजोर है तो और अधिक काम किया जाए और अच्छी है तो सपने और शौक पूरे किए जाएं या फिर समाज के उत्थान के लिए काम किया जाए।

और अब अंतिम बिंदु
*"जन"*
जिसके लिए में कुछ भी नही कहूंगी। क्योंकि लोकतंत्र में विपक्ष का विशेष महत्व है क्योंकि विपक्ष बुराइयां न बताए तो अच्छाइयां पता कैसे चलेगी। लोग सामने बैठ कर टॉर्च जला जला कर आपको अंधेरे में छुपी चीजें दिखाते रहेंगे अब ये तो आप सोचें कि अंधेरा देखकर डरना है या चलें कुछ कदम उन अंधेरों की ओर अपने साथ थोड़ा उजाला लिए ये गुनगुनाते हुए,..
"कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना,
छोड़ो बेकार की बातों में, *छिन न जाए चैना।"* 👅

*अंत मे एक बात*

कैमिकल से पके फल, सब्जियां और अनाज खाकर जी रहे हैं,
प्रदूषण, ओजोन की किरणें और कई नुकसान उठाकर जी रहे हैं,
खुशबू डियो या परफ्यूम से आए या फिर कागज के फूल से,
मायने ये रखता है कि 
*आभासी दुनिया में ही सही कुछ पल हर गम भुलाकर जी रहे हैं।*

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