Friday 17 July 2020

*"देश में अनलॉक : सुरक्षित या असुरक्षित"!*


कल किसी जरूरी काम से एक कॉल किया पिछले कई दिनों से किसी को फोन करने पर कोरोना के प्रति जागरुक करने वाली कॉलर ट्यून जो कहती थी कि *'कोरोना वायरस या कोविड-19 से आज पूरा देश लड़ रहा है। मगर याद रहे हमें बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं।' * वो अब बदल गई है कि *नमस्कार कोविड-19 के अनलॉक की प्रक्रिया अब पूरे देश में शुरू हो गई है, ऐसे में अपने घरों से बाहर तभी निकलें जब बहुत आवश्यक हो, फेस कवर या मास्क पहनते समय ध्यान रखें कि मुंह और नाक अच्छी तरह से ढ़कें रहें, सार्वजनिक स्थानों पर कम से कम दो गज या छह मीटर की दूरी रखें, हाथ और साफ संबंधी स्वच्छता का पालन करें, याद रखें कि छोटी सी लापरवाही ही भी भारी पड़ सकती है, खांसी बुखार या सांस लेने संबंधी समस्या होने पर तुरंत राज्य हेल्पलाइन या राष्ट्रीय हेल्पलाइन 1075 पर संपर्क करें, भारत सरकार द्वारा जनहित में जारी।*
विचारों का सिलसिला थमता उसके पहले ही कल जब अन्तरा शब्दशक्ति पटल पर गद्य का विषय क्या देना है पूछा गया तभी अनलॉक को लेकर मेरे मन मे अनेक सवाल चल रहे थे, उन्ही सवालों के जवाब तलाशने के लिए मैंने बिना देरी किये विषय दिया "देश में अनलॉक : सुरक्षित या असुरक्षित"! और तुरंत ही मस्तिष्क में विचारों का सिलसिला फिर शुरू हो गया।
मैंने आज सभी के विचार पढ़े और सहमत भी हूँ कि अर्थव्यवस्था के चरमराने का आतंक और सामान्य जीवन मे लौटने की अपेक्षा सभी की है जो बिल्कुल वाजिब भी है। 
एक असंगत से लगने वाला उदाहरण दे रही हूँ 'मैं हर कठिन कार्य की पूर्ति के बाद या मन बेचैन हो या निराशा बढ़ने लगती हो तो हमारे असहाय पशु सेवा केंद्र चली जाती हूँ, जो नदी के किनारे एक विशाल परिसर में बना है, जहाँ लगभग 700 गोधन, 1400 कबूतर, 200 खरगोश, 30-35 कुत्ते होंगे। सभी पशुओं में एक सी बात जो मैंने देखी वो ये कि शाम को गौशाला का गेट खुलते ही तेजी से धक्का मुक्की करते हुए पहले कौन की रेस की तरह अपनी-अपनी नियत जगह पर पहुंचते हैं। अपने आसपास के पशुओं की उपस्थिति को भी महसूस करते हैं। और अनुशासित तरीके से अपनी नियत जगह पर ही चारा खाते हैं, और फिर अपनी उस जगह पर खुद ही चले जाते हैं जहाँ रात को रहना है। और बड़ी बात ये है कि ये अनुशासन ये पशु बहुत जल्दी सीख जाते हैं। 
दूसरी तरफ हमने भेड़ों के बारे में सुना है कि सामने गड्ढा हो तो भी एक भेड़ के पीछे सारी भेड़ें गिरती चली जाती हैं, बिना परिणाम सोचे।
सोचिए कि हम किसके जैसे हैं? कैसा व्यवहार कर रहे हैं? अगर शिक्षित और अनुशासित हैं तो क्या समझ रहे हैं आज जिंदगी के अभिन्न अंग मोबाइल के हर कॉल पर हमें समझाया जा रहा है कि अनलॉक की प्रक्रिया में भी मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, और सबसे पहले अपनी खुद की केयर करनी है ताकि हम किसी की जान के लिए खतरा न बने और न अपनी जान जोखिम में डालें। जिस तरह मार्केट के भीड़-भाड़ बढ़ रही है, अनलॉक में लोग उमड़े जा रहे बाहर निकलने को, तो सोचिए लॉक डाउन के सख्त कदम न उठाए जाते तो आज भारत की स्थिति क्या होती? जिस बीमारी ने 33 करोड़ की आबादी के अतिविकसित देश को जिस संक्रमण ने नहीं छोड़ा तो गलियों और बस्तियों में बसने वाले भारत की हालत क्या होती जहाँ बात-बात में उत्सव और भीड़ इक्कठी हो जाती है, इस बीमारी को कैसे रोका जाए? शादी-विवाह की इतनी जल्दी क्यों है जब दो लोगों को 2 गज की दूरी रखनी है तो कुछ महीने हम ऐसे अवसरों को टाल नहीं सकते। लॉक डाउन में सादगी से होने वाले आयोजनों ने कितने लोगों को संपर्क में ला खड़ा किया। भेड़चाल चल पड़ी, हर तीसरे दिन किसी के यहाँ का न्योता और हम खुश की 50 लोगों में हमारा भी नाम है? 
मेरी पूर्णतः व्यक्तिगत सोच है कि अनलॉक को सुरक्षा का प्रतीक मानकर मनमानी पर मत उतरिये, देश को खतरे में डालने के उत्तरदायी हम सब होंगे। इस तरह अनलॉक होकर जान गंवाने से बेहतर है पूरे साल का लॉक डाउन क्योंकि अर्थव्यवस्था जनता से है, महामारी ने जान ही ले ली तो कैसा अर्थ और कैसा अनर्थ? *जान है तो ही जहान है*।
काश भेड़ों को भी शिक्षित और अनुशासित किया जाता और एक भेड़ भी समझदार होती तो रुक जाती ताकि उसके बाद की सारी भेड़ें रुककर गड्ढे में गिरने से बच जाती। 
कहना बस इतना है कि अनलॉक को आजादी समझने की भूल करने वाले सावधान हो जाएं, 50 की आड़ में 100 कई भीड़ कुछ पल की खुशी दे सकती है पर कहीं ये जिंदगी के साल कम न कर दें। 
याद रहे सुबह से शाम, शाम से रात और रात से फिर भोर भी अकस्मात नहीं होती पूरे 24 घंटे का चक्र होता है। तो कोरोना की महामारी के चक्र को तोड़ने के लिए भी समय के हिसाब से दी गई हिदायतों को मानते हुए अनलॉक को संचालित करें, भेड़ चाल से बचें, जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं है। जिंदगी रही तो खुशियां जरूर लौटेंगी लेकिन अपने तरीके से अपने समय से लापरवाही से नहीं।

हर जीवन अनमोल है लापरवाह मत बनो,
मन और मस्तिष्क की सुनो, बहरे मत बनो,
हिदायतें अनसुनी करके खतरे में क्यूँ पड़ना,
अपने साथ देश के लिए भी खतरा मत बनो।

#डॉप्रीतिसमकितसुराना

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