Thursday 2 July 2020

कारण कुछ भी हो



हाँ!
मैं कट्टरता से मानती हूँ
इस बात को
कारण कुछ भी हो
पर जीवन मे नीरसता न हो
श्रृंगार रस (रति)
हास्य रस (हास)
करुण रस (शोक)
रौद्र रस (क्रोध)
वीर रस (जोश)
भयानक रस (भय)
वीभत्स रस (घृणा)
अद्भुत रस (आश्चर्य)
शांत रस (निर्वेद)
वात्सल्य रस (ममत्व)
इनसे विमुख जीवन भी कोई जीवन है?
इससे से मृत्यु भली,..!
जीना तो वही जीना है
जो प्रकृति के पांच तत्वों से जुड़े 
सभी रसों को स्वयं अनुभूत करके
रुचि के अनुरुप रच का चयन कर 
आचरण में लाए,...!
कारण कुछ भी हो पर 
रसहीन जीवन जीते जी मृत्यु ही है।

#डॉप्रीतिसमकितसुराना

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