अधूरी हूँ, अकेली हूँ, भले ही अलबेली हूँ!
पर हाँ!
कभी-कभी टूटती हूँ मैं
खुद से ही रूठती हूँ मैं,..!
लगता है तब
लबों पर ये हँसी किसके लिए
सपने हैं पर किसके लिए
क्या सचमुच ये अपनो के लिए है?
और अपने कौन हैं?
जो मेरी मुस्कुराहटों,
मेरी सफलताओं,
मेरी उम्मीदों
मेरी कोशिशों को देख रहा है
और मेरे साथ खुश हो रहा है?
काश!
कोई होता,
कोई तो,...
जो देखता मेरी आँखों की नमी,
मेरा संघर्ष,
मेरी सफलता के पहले की
असफल कोशिशें,
मेरी उम्मीद के पीछे की नकारात्मकता
मेरी ऊर्जा के पीछे का डर,
मेरी थकान, मेरे दर्द, मेरी अपेक्षाएँ!
सुनो!
संभाल सको तो संभालो मुझे
जो नहीं दिखता उस रूप में पहचानो मुझे
जो छुपा रह जाता है अकसर
उस दर्द से बाहर निकालो मुझे!
अधूरी हूँ, अकेली हूँ,
भले ही अलबेली हूँ!
सच
कभी-कभी टूटती हूँ मैं
खुद से ही रूठती हूँ मैं,..!
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
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