चाहती थी वो पढ़ ले
वो जो अनकहा था
इसलिये रेत पर लिखा था कुछ
हवाएँ आई और उड़ा ले गई
अनकहा ही रहा सब कुछ
पानी में लिखा घुल गया उसी में
मिट्टी में जो भी लिखा
मिट गया ठोकरों से लोगों की,
बस वही रहा अमिट हमेशा-हमेशा
जो लिखा था भावरंग से हृदय पर,...
फिर सोचा जब है हृदय में अंकित
तो लिखा ही क्यूँ मिट्टी, पानी, रेत पर,..
पढ़ लिया मनमीत ने सब
मिली जो पल भर नज़र,...!
#डॉप्रीतिसमकितसुराना
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